आज सुबह मैंने पूछा आलस्य से,
" भाई, तुम क्यूँ मुझे इतना सताते हो?
हर समय बिन बुलाये मेहमान के जैसे आस-पास
मंडराते हो!
मुझे नहीं पसंद है यूँ तुम्हारा आना,
तुम्हारे आने से ही तो मेरे काम अधूरे रह जाते हैं!
मेरे नाम न कमाने की,
धन न पाने की एक-मात्र वजह तुम ही हो!"
आलस्य पहले तो खूब हँसा!
उसे हँसता देखकर
" भाई, तुम क्यूँ मुझे इतना सताते हो?
हर समय बिन बुलाये मेहमान के जैसे आस-पास
मंडराते हो!
मुझे नहीं पसंद है यूँ तुम्हारा आना,
तुम्हारे आने से ही तो मेरे काम अधूरे रह जाते हैं!
मेरे नाम न कमाने की,
धन न पाने की एक-मात्र वजह तुम ही हो!"
आलस्य पहले तो खूब हँसा!
उसे हँसता देखकर
तो मानो मेरा खून खौल रहा था!
आलस्य हँसा और बोला-
" लड़की, तुम कितनी सयानी हो!
आलस्य हँसा और बोला-
" लड़की, तुम कितनी सयानी हो!
मेरी तो प्रकृति है, हर समय सभी के
आस-पास रहने की, मौका तलाशने की !
आस-पास रहने की, मौका तलाशने की !
ताकि
मनुष्य को आराम के पल दे संकू!
क्युकी लालच में तो मनुष्य भूल ही जाता है,
कि उसे थोडा सा विश्राम करना है!
मनुष्य को आराम के पल दे संकू!
क्युकी लालच में तो मनुष्य भूल ही जाता है,
कि उसे थोडा सा विश्राम करना है!
पैसे की भूख और नाम कमाने की चाह
में वो अपने तन को भूल ही जाता है!
इसलिए मैं तो तुम्हारे भले के लिए आस-पास रहता हूँ!
में वो अपने तन को भूल ही जाता है!
इसलिए मैं तो तुम्हारे भले के लिए आस-पास रहता हूँ!
मुझे क्यों इतना बुरा-भला कह रही हो?
अच्छा ये बताओ,
जो लोग इतना धन कमाते हैं,
रात -दिन कर्म करते हैं,
मैं क्या उनके आस-पास नहीं मंडराता?"
आलस्य के इस सवाल ने मुझे थोडा सोच में डाल दिया!
क्या कहूँ?
और वाकई में उनके आस-पास आलस्य रहता है या नहीं ?
मैं इससे अनजान सी होकर बोली--
" तुम उन लोगो के पास तब जाओगे न,
जब तुम्हे मुझसे फुरसत मिलेगी!
रात-दिन तो यही पैर पसारे रहते हो!"
आलस्य को थोडा क्रोध तो आया,
किन्तु उसे सँभालते हुए बोला--
"देखो लड़की,
मेरी प्रकृति के अनुसार मैं हर एक मनुष्य,
यहाँ तक की हर एक जानवर के आस-पास भी रहता हूँ!
लेकिन तुम इंसान हो ही ऐसे
जिन्हें हर एक चीज़ का लालच हो जाता है!
धन आने लगेगा तो उसका लालच और
सो जाओगे तो आराम का लालच!
इसमें भला मेरा क्या दोष?
जो इंसान मुझसे दोस्ती करके ,
मेरा साथ देते हैं,
और मुझे समझाते हैं कि
बाकी के काम भी जरुरी हैं!
वो लोग खूब धन कमाते हैं,
खूब कर्म करते हैं!
अच्छा ये बताओ,
जो लोग इतना धन कमाते हैं,
रात -दिन कर्म करते हैं,
मैं क्या उनके आस-पास नहीं मंडराता?"
आलस्य के इस सवाल ने मुझे थोडा सोच में डाल दिया!
क्या कहूँ?
और वाकई में उनके आस-पास आलस्य रहता है या नहीं ?
मैं इससे अनजान सी होकर बोली--
" तुम उन लोगो के पास तब जाओगे न,
जब तुम्हे मुझसे फुरसत मिलेगी!
रात-दिन तो यही पैर पसारे रहते हो!"
आलस्य को थोडा क्रोध तो आया,
किन्तु उसे सँभालते हुए बोला--
"देखो लड़की,
मेरी प्रकृति के अनुसार मैं हर एक मनुष्य,
यहाँ तक की हर एक जानवर के आस-पास भी रहता हूँ!
लेकिन तुम इंसान हो ही ऐसे
जिन्हें हर एक चीज़ का लालच हो जाता है!
धन आने लगेगा तो उसका लालच और
सो जाओगे तो आराम का लालच!
इसमें भला मेरा क्या दोष?
जो इंसान मुझसे दोस्ती करके ,
मेरा साथ देते हैं,
और मुझे समझाते हैं कि
बाकी के काम भी जरुरी हैं!
वो लोग खूब धन कमाते हैं,
खूब कर्म करते हैं!
तुम्हारी गलती है कि
तुम मुझे आवश्यकता से ज्यादा चाहती हो!
| अति सर्वत्र वर्ज्यते|
मैं तो अपना काम करता हूँ!
किन्तु तुम क्यों मुझसे इतना प्रेम करती हो?
तुम क्यों मेरे आने पर मेरी और आकर्षित होती हो?
इतना बड़ा सत्य सुनकर
मेरी आँखों से आंसू आ गए!
मैंने कहा--
" तो फिर तुम ही बताओ,
मैं तुम्हारे आने पर अपना काम करती रहूंगी,
तो क्या तुम्हारा अपमान नहीं होगा?
मुझसे आये अतिथि का अपमान नहीं किया जाता!"
मुझे रोता देखकर
आलस्य को थोडा अपने क्रोध पर मलाल हुआ!
और बोला--
" देखो तुम रोना बंद करो,
मैं तुम्हे एक बात बताता हूँ,
मैं -आलस्य कोई मेहमान नहीं हूँ..
मैं तो तुम्हारा एक ऐसा दोस्त हूँ,
जो हर समय तुम्हारे साथ रहता हूँ..
अतः तुम्हे किसी प्रकार का संकोच करने की
आवश्यकता नहीं है!
जब भी तुम काम में लगी रहोगी,
मुझे कहना इंतज़ार करने को,
मैं इंतज़ार करूँगा,
जितना तुम कहोगी,
किन्तु जो समय है न,
वो तुम्हारा दोस्त नहीं है, जिसे तुम अपना दोस्त कहती हो!
वो तुम्हारा इंतज़ार कभी नहीं करेगा!"
बड़ा ही आश्चर्य हुआ इतना बड़ा सत्य जानकर!
मैंने कहा...
"आलस्य तुम सही कह रहे थे
कि मैं तुमसे प्रेम करती हूँ..
और अब ये सब सुनकर तो और करने लगी हूँ..
सही कहा कौन ऐसा सच्चा दोस्त होगा,
जो जितना कहोगे-इंतज़ार करेगा!
तुम वादा करो कि तुम हमेशा मेरे काम खत्म होने तक इंतज़ार करोगे!"
आलस्य ने मुझे गले लगाया और कहा--
"अब जाओ नहीं तो बातो में तुम्हारा काम फिर अधुरा रह जाएगा!
बची हुई बात तो हम आराम के समय में ही कर लेंगे!"
:)
और मैं काम करने चली गई!
Gunj Jhajharia
तुम मुझे आवश्यकता से ज्यादा चाहती हो!
| अति सर्वत्र वर्ज्यते|
मैं तो अपना काम करता हूँ!
किन्तु तुम क्यों मुझसे इतना प्रेम करती हो?
तुम क्यों मेरे आने पर मेरी और आकर्षित होती हो?
इतना बड़ा सत्य सुनकर
मेरी आँखों से आंसू आ गए!
मैंने कहा--
" तो फिर तुम ही बताओ,
मैं तुम्हारे आने पर अपना काम करती रहूंगी,
तो क्या तुम्हारा अपमान नहीं होगा?
मुझसे आये अतिथि का अपमान नहीं किया जाता!"
मुझे रोता देखकर
आलस्य को थोडा अपने क्रोध पर मलाल हुआ!
और बोला--
" देखो तुम रोना बंद करो,
मैं तुम्हे एक बात बताता हूँ,
मैं -आलस्य कोई मेहमान नहीं हूँ..
मैं तो तुम्हारा एक ऐसा दोस्त हूँ,
जो हर समय तुम्हारे साथ रहता हूँ..
अतः तुम्हे किसी प्रकार का संकोच करने की
आवश्यकता नहीं है!
जब भी तुम काम में लगी रहोगी,
मुझे कहना इंतज़ार करने को,
मैं इंतज़ार करूँगा,
जितना तुम कहोगी,
किन्तु जो समय है न,
वो तुम्हारा दोस्त नहीं है, जिसे तुम अपना दोस्त कहती हो!
वो तुम्हारा इंतज़ार कभी नहीं करेगा!"
बड़ा ही आश्चर्य हुआ इतना बड़ा सत्य जानकर!
मैंने कहा...
"आलस्य तुम सही कह रहे थे
कि मैं तुमसे प्रेम करती हूँ..
और अब ये सब सुनकर तो और करने लगी हूँ..
सही कहा कौन ऐसा सच्चा दोस्त होगा,
जो जितना कहोगे-इंतज़ार करेगा!
तुम वादा करो कि तुम हमेशा मेरे काम खत्म होने तक इंतज़ार करोगे!"
आलस्य ने मुझे गले लगाया और कहा--
"अब जाओ नहीं तो बातो में तुम्हारा काम फिर अधुरा रह जाएगा!
बची हुई बात तो हम आराम के समय में ही कर लेंगे!"
:)
और मैं काम करने चली गई!
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