हमारे सामने कोई भी परिस्थिति आये, वो इतनी बड़ी नहीं होती की हम उसका सामना न कर सके!
हाँ अपनों के जाने का दुख होता है< और होना भी चाहिए, यही एक इंसान की पहचान है, कि वो अपने पराये में फर्क जानता है!
किसी कारणवश अगर कोई अपना आपसे दूर चला जाए तो उसमे उसकी या अपनी गलतिय ढूँढना , बस उसके आने कि आस देखना गलत है!
ये तो बस परिस्थितियों का खेल है, जो हर समय एक जैसी नहीं होती!
आजकल टेलीविजन पर आ रहे बिग बॉस को सब देखते तो हैं, लेकिन मुझे उसे देखकर जो भी समझ आया है वो आपके साथ बाटना चाहती हूँ!
ये बिलकुल हमारे संसार की तरह है, बाहरी दुनिया से अलग...जैसे हमारा संसार!
दोस्त हैं, दुश्मन है.....पर सच में कोई नहीं ,,,और सब हैं!
यहा खेल खेले जाते हैं, छोटा घर हैं, कम लोग हैं,हमारी नजर है, इसलिए सब साफ़ पता लगता हैं!
पर वही खेल असली जिंदगी में भी खेले जाते हैं!
न हमारी नजर होती है, और न पता लग पाता है, जब तक परिणाम न आये उस खेल का!
आपके हसने, खाने , बोलने, चलने पर हर समय लोगो की नजर रहती है!
वही असल जिंदगी में भी होता है!
प्यार सब करते हैं,,,,पर जहा नोमिनेशन कि बात आये कोई अपना नहीं,
वैसे ही जहा पर असल जिंदगी में खुद की खुशियों का , और आराम का ख्याल आये...कोई अपना नहीं!
मैं तो सही में दात देती हु, ऐसे निर्माताओ की...
अगर चाहो तो इतना कुछ सीख सकते हो,,,
एक कृत्रिम दुनिया बना कर दी है, और बिग बॉस मानो हमारे समाज के नियम-कायदे, और महापुरुषों की खिची हुए दीवारे हो...
बिग बॉस के नियम को मानने और कैमरे के बाहर बसी दुनिया के सामने अच्छा दिखने के लिए वो लोग रोज रूप धरते हैं! तो असल जिंदगी में भी उन्ही नियम-कायदों को अपने हिसाब से मरोड़ने और दुनिया के सामने अच्छा बनने के चक्कर में इंसान नए नए रूप धरता है!
अगर ये बिग बॉस के नियम कायदे न हो, अगर वहां नोमिनेशन का खतरा न हो,
तो निकल कर आएगा सबका असली रूप...मेरे हिसाब से..तब ये रोज होने वाली खिट-२ भी बहुत कम होगी और अगर होगी तो तुरंत समाधान भी निकल आएगा...
हाँ ,तो अब तक आप मेरी बात समझ ही गए होंगे...
की अगर ये समाज के नियम कायदों की बेडिया न हो, दुनिया के सामने अच्छा बनने का ढोंग न हो...
तो फिर कैसा होगा इंसान...?
तब असली मनुष्य सामने आएगा...तब देखना प्रेम और विश्वास के फूल कैसे खिलेंगे...और तब दुसरो की मदद और उन्नति चाहने से अपने ही आप में एक सम्पूर्ण समाज बन जाएगा..!
किन्तु ये तो मेरी कल्पना है...ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि मनुष्य अपने आप कि बुधि का इस्तेमाल कर अपने ऊपर बिछाये इस जाल से निकल सके....
तो फिर बिग बॉस से और क्या सिखा जाए?
मेरे हिसाब से हम हर एक वाकये को जिंदगी में असल रूप दे कर अगर मेरे साथ होता तो मैं क्या करता?
ये सोचे तो भी आगे आने वाली कई परिस्थितियों से लड़ने की पहले से तयारी हो जाएगी!!
सोचा आपके साथ बाट लू...
आशा है आपको पसंद आया होगा!
आपके विचारो का स्वागत है !
गुंजन झाझारिया
जीवन मे हर छोटी बड़ी चीजे हमे सीख दे जाती है गुंजन .... बस कब हम उस से सीख ले पाते है यह निर्भर करता है की कब हम अपने मे बदलाव के लिए तैयार है ....
जवाब देंहटाएंबिलकुल सहमत हूँ आपसे...
जवाब देंहटाएंसिखने की कोई उम्र नहीं होती...:)
धन्यवाद..