गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

सजती रात में जंचता चाँद---भाग 2

सजकर आते देख,
क्यों तूने सजना छोड़ दिया...
प्रसंशा करता तू भी,
इसके शीघ्र सज कर आने की...
किन्तु कैसे भूल गया वो शब्द?
कैसे नाकारा निरंतर गूंजते साज को?
जो कहता रहा--
सजना है तुझे,
सजना है तुझे,
सुन्दर ----अतिसुन्दर---सर्वसुन्दर!

अरे भैया!
पहले सज नहीं पाए तो दुखी हो गए!
यहाँ प्रतिस्पर्धा तो सबसे सुन्दर सजने की थी!
सबसे पहले सजने की नहीं!
जब कूदे थे इस सजने की दौड़ में 
तब क्यों ना सजने का पूरा नियम पढ़ा!
गलती हुई है,
अब सजा भुगत रहे हो!

लेकिन अब याद दिला दूँ मैं...
सजने की प्रतिस्पर्धा अब भी चल रही है,
और लोगो का सजना जारी है!
सजने के सामान की कमी नहीं है तेरे पास अब भी!
और अब भी  उद्देश्य वही है!
सजना है तुझे,
सजना है तुझे!
सुन्दर--अतिसुन्दर---सर्वसुन्दर!
यहाँ सबसे पहले सजने की कोई होड़ नहीं है!

गूंज झाझारिया --

बुधवार, 14 दिसंबर 2011

सजती रात में जचता चाँद

सजाने चले थे,
सजने के बहाने !
सजना ना आया !!
सजाना कैसे आता?

ना सज पाए,
ना सजा पाए!
इसी बीच कोई और सजकर निकला यूँ,
जैसे
सजती रात में जंचता चंद्रमा हो!
उसको सजकर आता देखा तो,
जिसको सजाने चले थे ,
उसकी उलाहना ही मिल गई!

अरे भैया!!
कह दिया होता--
खुद सजने आये थे तुम्हे सजाने के बहाने!
तुम्हे सजाना तो कभी मकसद नहीं था मेरा!
जितना दुःख तुम्हे है,
उससे ज्यादा दर्द यहाँ हैं!

जो खुद का ना सजा पाया ,
उससे बड़ा बदसूरत कौन होगा!
ये पंक्तिया लिखी और जीवन का एक अद्भुत सत्य सामने आया...
आज पहली बार अपनी कलम की प्रसंशा करने का मन  हुआ!
मेरे कुछ हिंदी में कमजोर दोस्त शायद यहाँ लिखी पंक्तियों में छिपा रहस्य नहीं समझ पाए!
सोचा क्यों ना उनके लिए थोड़ी व्याख्या कर दी जाए सरल हिंदी में!
वैसे भी स्कूल में मुझे हिंदी और संस्कृत की अध्यापिका से व्याख्या के मामले में काफी प्रसंशा मिलती थी! :P
हाँ तो एक बालक जब पैदा होता है, तो भगवान् उसे तन-मन-बुधि देता है...
और कहता है की "लो, सजने के लिए सारी सामग्री दे दी है! इसका उपयोग करो और सुन्दर ----अतिसुन्दर----सर्वसुन्दर बन कर दिखलाओ!"
लेकिन उसके पैदा होने के साथ ही ना जाने कितने सगे-सबंधियो, मित्रो, भाई-बहनों को लगता है कि ये हमें सजाने आया है!
हमारा मान बढ़ने आया है!
चलो कोई नहीं बहाना उन्हें सजाने का रहता है, लेकिन इसकी आड़ में में वह स्वयं को ही सजाने का प्रयत्न करता है!

{अच्छा जी ---अब आप कहोगे जब व्याख्या ही कर रही हो तो ये सजना या सजाना है, इसका अर्थ तो बतलाओ!
ये तो आप ही जानो कि आप क्या सजाना चाहते हो, और क्यों?
हर एक के लिए इस सजने की अलग परिभाषा है!}

अब देखिये---अगर हम ना सज पाए, उससे पहले कोई और सज कर निकल गया तो---सभी रिश्तेदार, माँ-पापा, भाई-बहन कहेगे-अरे तुमने ये नहीं किया? हमारा मान गिरा दिया! तुम इतना नहीं कर पाए? और उलाहना देंगे ! तो 
जवाब देना---अरे भैया!!
कह दिया होता--
खुद सजने आये थे तुम्हे सजाने के बहाने!
तुम्हे सजाना तो कभी मकसद नहीं था मेरा!
जितना दुःख तुम्हे है,
उससे ज्यादा दर्द यहाँ हैं!

आखिर में दो पंक्तियाँ--

शायद इन्हें समझाने की जरुरत नहीं पड़ेगी---
जो खुद का ना सजा पाया ,
उससे बड़ा बदसूरत कौन होगा!?
उम्मीद ही नहीं विश्वास है कि अप सब को समझ आया होगा!

इसी लेख के ख़त्म होने के साथ सारे बादल भी उड़ गए!
अब आसमान साफ़ नजर आ रहा है!

धन्यवाद!

गूंज झाझारिया





गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

मर्जी काम की

आप सभी को नमस्कार!

अक्सर देखा और महसूस किया है कि, जिंदगी को हम जैसी दिशा दे देते हैं!
वैसी ही राह पकड़ लेती है!
कभी कभी तो ये अपने हाथ की कठपुतली लगती है, अगले ही पल में लगता है कि इसका रिमोट ऊपर वाले के हाथ में हैं!
लेकिन ऊपर वाले के हाथ में कैसे? ये हज़म नहीं होता!
हाँ, आपके आस-पास रहने वाले लोगो का प्रभाव होता है!
अभी पल्लवी जी का भी एक इसी से मिलता जुलता लेख आया था-जिसमे उन्होंने उल्लेख किया था "कुछ तो लोग कहेंगे"!
तो अक्सर उनके कहने और करने का प्रभाव हमारे जीवन पर अवश्य पड़ता है!

अभी आप सोच रहे होंगे कि आखिर मैं बात किस विषय पर कर रही हूँ? जिंदगी की दिशा या दुसरो का प्रभाव...

जी नहीं, मैं तो अपने ही कर्मो की बात कर रही हूँ....मैं बात कर रही हूँ एक ऐसे अवगुण की, जो हर दुसरे इंसान में होता है! एक किस्सा सुनती हूँ!
अभी-२ २ महीने पहले नए घर में रहने आई हूँ! यहाँ हमारे ऊपर के फ्लैट में एक आंटी रहती हैं!
 दिल की साफ़ हैं और मुझसे काफी अच्छे से बात भी करती हैं!
लेकिन अक्सर वो मुझसे शिकायते करती रहती हैं, कभी अपने पतिदेव की , कभी सासु माँ की,
कभी ननद की या फिर पड़ोसन की!उनके पास सिर्फ यही बात होती है! मैं अपनी तरफ से कोशिश कर चुकी कई बार उन्हें समझाने की कि ऐसी बाते कर के वो अपने अन्दर इतनी नकारात्मक उर्जा भर चुकी हैं कि यदि कोई कुछ अच्छा करता भी है तो उन्हें दिखाई नहीं देता! उस समय तो वो समझ जाती हैं! लेकिन अब लगता है ये उनकी आदत हो गई है!

उन्हें अक्सर जो समस्या रहती है वही है--हर दुसरे आदमी की समस्या !
जी हाँ मैं उसी की बात कर रही हूँ...
वो ये है कि पहले तो वो दुसरो का काम कर देती हैं, बिना कहे सहायता कर देती हैं, या यूँ कहो जबरदस्ती कर देती है ! और फिर जब सामने वाला उनका कोई काम न करे तो उनका दिल दुखता है---
"मैंने तो उसका इतना किया, उसने मेरे लिए क्या किया?" 
अरे भाई! ये क्या बात है?
तुमसे हुआ तो तुमने किया! अगर ये सोच के किया था कि चलो अब इसे मेरा काम करना ही पड़ेगा तो उससे गलत तो आप हो!
और अगर ऐसा सोचा नहीं था तो फिर अपने किये कराये को बोल बोल कर क्यों बर्बाद करते हो?

मुझे लगता है कि इससे तो अच्छा है--न किसी का करो, न किसी से करवाओ!
लेकिन ऐसे लोगो का क्या , जिनसे न करवाने पर भी कर देते हैं! और उसे अहसान समझकर हावी हो जाते हैं!
सामने वाला कुछ न कर पाए तो उसे बुरा-भला कह दो!

मानती हूँ कि हम समाज में रहते हैं और एक-दुसरे की मदद करनी चाहिए!! किन्तु ये तो सबकी मर्जी है कि वो कोई काम करना चाहे या न करना चाहे---कोई कैसे उससे जबरदस्ती करवा सकता है? और फिर आप ये कहो कि--"कर देता तो उसका क्या जाता?"
ये गलत है!

यह विषय बहुत छोटा है, किन्तु अक्सर मैंने लोगो को घर में, चाहे वो पति-पत्नी हों या सास-बहु, माँ-बच्चे, सबको इस काम के विषय पर लड़ते देखा है!
"ये काम तुम्हारा किया , तो क्या तुम इतना नहीं कर सकते?"

प्यार से ऐसी बाते हो तो आनंद आता है, लेकिन इस विषय पर लड़ाई का कोई ओचित्य ही नहीं है!
क्युकी हम सब बुद्धिजीवी हैं, और अपने दिमाग से सोचकर ही सब करते हैं! और अगर दिल नहीं किया तो नहीं करते हैं! फिर उस बात को कोई थोप नहीं सकता!

आपके विचारो का स्वागत!

गूंज झाझारिया!








मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

छवि सुधारने की जंग

अभी कल एक फेसबुक दोस्त ने कहा की आपको इस तरह मॉडल की फोटो अपने प्रोफाइल पर नहीं लगानी चाहिए, गलत छवि बनती  है...!
अब बैठकर सोच रही हूँ कि ऐसा आखिर क्यों होता है?
"मैं अच्छा लिखती हूँ,
मेरी सोच साफ़-सुथरी है!
मैं अपने अलावा देश की मौजूदा समस्याओ पर भी सोचती हूँ..
और एक युवा नागरिक होने के कर्तव्यो का पालन भी करती हूँ...!"

इन सब बातो को साबित करने लिए जरुरी है कि  मैं सिर्फ ऐसी चीजों का इस्तेमाल करूँ, जो मेरी पुरानी पीढ़ी करती थी.?
क्या मेरी सोच दिखाने के लिए मुझे खादी पहनना,या साडी पहनना जरुरी है?

लेकिन मेरे विचारो का क्या?
मैं तो उन मोडल्स का , अदाकारों का , सभी फिल्म निर्माताओ का भी आदर करती हूँ,
उनकी प्रशंसा करती हूँ...
बहुत कुछ सीखा  है मैंने उनसे भी!

ये वही लोग हैं, जो समाज के हर रूप-रंग को आपके सामने रखते हैं!
गन्दगी ये लोग नहीं फैलाते!
ये तो आइना हैं, हमारा!
बस हम लोग वो आइना देख नहीं पाते और आग-बबूला हो जाते हैं कि गंदे दृश्य दिखाकर ये लोग हमारे समाज को गन्दा कर रहे हैं! किसी फिल्म के आने पर जिसमे कुछ ख़राब दृश्य हैं, (आपके हिस्साब से, मुझे लगता है, वो मानवीय जीवन का हिस्सा हैं, और उन्हें छुपाना एक अदाकार के अदाकारी का अपमान है! उसके लिए जरुरी है कि वो अपने किरदार को जिवंत कर सके) शिव-सेना, और हिन्दू-समाज , और न जाने कितने समाज मारने-पीटने पर तुल जाते हैं,
हमारे देश कि सचाई है ये, इससे क्या घबराना?
जब बलात्कार का प्रतिशत रजिस्टर्स , और फाइल्स में बढ़ता रहता है,
जब सड़क किनारे यूँ नग्न शरीर देखने को मिलते हैं,
तब क्यों नहीं कोई समाज आता है, दोषियों को दंड देने?

जब दोषियों को तारीखे बढाकर, मामला ठंडा होने पर रिहा किये जाने पर कोई नहीं बोलता...?
लेकिन जब वही सच्चाई निर्माता दिखाए तो वो गलत है?

मेरा तो कहना है की अगर सच्चाई से जीना सीखना है ,
तो सभी राजनेताओं को, सभी पुलिस वालो को,
और सभी मीडिया वालो को , सीखना चाहिए उनसे!

जहा तक कपड़ो की बात है,
क्यों फैशन गलत है?

मैं जिन्दा हूँ,
मेरे अन्दर इंसान होने के सारे गुण हैं,(अवगुण भी)
मुझे रंग अच्छे लगते हैं,
मुझे भी अच्छा दिखना है!

इन सब बातों का मेरी छवि से क्या मतलब?

एक और उदाहरन दूंगी---आप, मैं या कोई भी हमारे बीच में ऐसा है? जो ये कह सके कि
मैं जो हूँ, मैं वो हूँ! मुझे कोई पछतावा नहीं आजतक मैंने जो भी किया उसका.
और फिर अपनी जीवन कि हर एक सच्चाई पुरे देश के सामने टीवी पर कह सकते हो?

ये किया है---पोर्न-स्टार ----सनी ने बिग बॉस पर!

वो उसका पेशा था,
लेकिन असली जिंदगी में उससे बहुत कुछ सीखा मैंने!
इतनी साफ़-सुथरी सोच, इतने मेहनती और इतनी ईमानदार !

आखिर में मेरा यही कहना है कि
अपने लिए ईमानदार बनो पहले!
सबसे ज्यादा जरुरी है!

[हो सकता है भावनाओं में बहकर शायद कुछ-एक बात मैंने गलत कह दी हों,
और आप -सब उससे सहमत न हो,,
उसके लिए क्षमा ...आपके विचारो कि सख्त जरुरत है सही राह के लिए]

धन्यवाद..

गूंज झाझारिया