मंगलवार, 26 नवंबर 2013

26/11

26/11 है।। कॉलेज के विद्यार्थियों ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया।। जिस विद्यार्थी ने मंच का संचालन किया, उसने याद दिलाया कि कितने शहीद हुए, तब हम मुंबई को बचा पाए।।। हर साल, हर दिन कितने ही वीर शहादत देते हैं।।। पर हमें कहाँ वक़्त की 2 मिनट रुक उन्हें श्रधांजलि दे। कम से कम उनके परिवार को तो सुकून मिले, उनके अपनों को हम याद करते हैं।।
आज खुद से खिन्नता हुई।। अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहने का दावा करने वाली "गूंज" ये कैसे भूल गई।।
देर आये पर दुरुस्त आये।।
उन सभी परिवारों को मेरा नमन, भीगी पलकों से ही सही , पर अपने अपनों को हमारी हिफाजत में भेजा।। जो वो न होते, तो मेरा क्या अस्तित्व था।।।
नमन
गुंजन झाझारिया

शनिवार, 9 नवंबर 2013

बड़े-बुजुर्गों की हिदायते

हमारी संस्कृति, पुराना रहन-सहन,  आबोहवा की मैं बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ। हर काम को करने का एक सही ढंग होता था  , हमारे पूर्वजो के पास । चाहे उन्हें ये व्यैज्ञानिक शौध के बारे में ज्ञान न भी हो, चाहे उनके समय शिक्षा का इतना बोलबोला भी न हो। पर उन्हें ज्ञान देने और मार्गदर्शन करने का काम लेखक, गायक भी करते थे। उस समय में भी वो ज्ञान का आदर करना जानते थे।
यदि बात बरसो पुरानी करूँ तो कबीर जी के दोहे बताते थे कि सही व्यवहार और निति क्या है? आज तक मानते हैं उनकी बात हम।
मेरी माँ अक्सर मुझे पुराने मुहावरे, लोकोक्तियाँ सुनाती है, जो आज का विज्ञान शौध करके सिद्ध ही कर रहा है अभी तक। जैसे कुछेक मुझे याद है जो आपको बताती हूँ,
" पेट नरम, पैर गरम  और सर ठंडा" =ये है स्वस्थ शरीर की निशानी। ये लक्षण नहीं हैं तो आप स्वस्थ नहीं हैं।
" पानी पीना छान के, रिश्ता करना जान के" = यानि कोई भी रिश्ता जान परख के करो और पानी हमेशा छना हुआ अर्थार्थ स्वच्छ ही पीओ।
 
आज सुबह के अखबार में लिखा था , कि पानी सुबह खाली पेट जरुर पीना चाहिए। हमारे बड़े- बुजुर्ग तो पालन भी करते थे इसका। चारपाई के पास ही लोटा या जग रखते थे पानी के लिए। और सवेरे प्रातः ही जल ग्रहण करते थे।
बड़े- बुजुर्गो की बात में दम तो होता ही था।
अतः हम अगर हमारे विज्ञान को उन नियम कायदों और बातो के साथ जोड़ दें, तो तरक्की दुगनी गति से होने लगेगी।।।
आप मेरी बात से सहमत हैं या नहीं , इसके बाते में अपने विचार जरुर रखिये।
सुप्रभातम
@गुंजन झाझरिया

व्यवहार

व्यवहार कोई मोबाइल , कपडे या गाड़ी की तरह तो हैं नहीं कि जब जी किया, बदल दिया। आजकल पीले का जमाना है , तो पीला ही खरीदेंगे। ठीक उसी तरह इन दिनों हवा मेरे पक्ष में नहीं तो चलो थोडा चापलूस बन जाते हैं। " गधे को बाप भी वही बना सकता है जिसे बनाना आता हो।" जिस व्यक्ति में यह कला हो।
व्यवहार, संस्कारों और अनुभवों की नींव पर खड़ा वो मकान है जिसकी बनावट नहीं बदली जा सकती ।
हाँ, उस मकान या ईमारत पर पुताई, रंगाई कर , सजा कर एक नया रूप दिया जा सकता है। उसके रख- रखाव का ध्यान रख उसे सदाबहार बनाया जा सकता है। उस मकान को बनाने में यदि कोई खिड़की या रोशनदान की कमी रह गई हो, तो काफी तोड़- फोड़ करनी होगी, बाहर की रौशनी को भीतर ल्लाने के लिए। उन पत्थरों पर वार कीजिए। अपनी बनाई इमारत को टूटता देख तकलीफ होगी। पर उसे सुंदर, मनमोहक रूप देने के लिए आपको अवश्य ये कदम उठाना चाहिए।
@गुंजन झाझरिया

शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

रंगीन तितलियाँ

आज पता चला कि तितलियो के रंगीन पंखो और सुन्दर उड़ानों का राज क्या है?
पूछोगे नहीं क्या?
" तितलियों की आंखें इंसानों से ज्यादा रंग देख सकती हैं।"
ये रहा तथ्य । पर तितली के रंगीन देखने से उसके रंगीन दिखने का क्या ताल्लुक ? है न।
अरे, जितनी रंगीन और खूबसूरत दुनिया को देखोगे, उतनी ही सुन्दरता भीतर दिखेगी और उतने ही साफ़ , सुंदर , और कोमल नज़र आओगे ।
तो आज से खुद को रंगीन बनाने की शुरुवात कर ही दीजिये।
सुप्रभातम।