शनिवार, 9 नवंबर 2013

बड़े-बुजुर्गों की हिदायते

हमारी संस्कृति, पुराना रहन-सहन,  आबोहवा की मैं बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ। हर काम को करने का एक सही ढंग होता था  , हमारे पूर्वजो के पास । चाहे उन्हें ये व्यैज्ञानिक शौध के बारे में ज्ञान न भी हो, चाहे उनके समय शिक्षा का इतना बोलबोला भी न हो। पर उन्हें ज्ञान देने और मार्गदर्शन करने का काम लेखक, गायक भी करते थे। उस समय में भी वो ज्ञान का आदर करना जानते थे।
यदि बात बरसो पुरानी करूँ तो कबीर जी के दोहे बताते थे कि सही व्यवहार और निति क्या है? आज तक मानते हैं उनकी बात हम।
मेरी माँ अक्सर मुझे पुराने मुहावरे, लोकोक्तियाँ सुनाती है, जो आज का विज्ञान शौध करके सिद्ध ही कर रहा है अभी तक। जैसे कुछेक मुझे याद है जो आपको बताती हूँ,
" पेट नरम, पैर गरम  और सर ठंडा" =ये है स्वस्थ शरीर की निशानी। ये लक्षण नहीं हैं तो आप स्वस्थ नहीं हैं।
" पानी पीना छान के, रिश्ता करना जान के" = यानि कोई भी रिश्ता जान परख के करो और पानी हमेशा छना हुआ अर्थार्थ स्वच्छ ही पीओ।
 
आज सुबह के अखबार में लिखा था , कि पानी सुबह खाली पेट जरुर पीना चाहिए। हमारे बड़े- बुजुर्ग तो पालन भी करते थे इसका। चारपाई के पास ही लोटा या जग रखते थे पानी के लिए। और सवेरे प्रातः ही जल ग्रहण करते थे।
बड़े- बुजुर्गो की बात में दम तो होता ही था।
अतः हम अगर हमारे विज्ञान को उन नियम कायदों और बातो के साथ जोड़ दें, तो तरक्की दुगनी गति से होने लगेगी।।।
आप मेरी बात से सहमत हैं या नहीं , इसके बाते में अपने विचार जरुर रखिये।
सुप्रभातम
@गुंजन झाझरिया

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