शनिवार, 9 नवंबर 2013

व्यवहार

व्यवहार कोई मोबाइल , कपडे या गाड़ी की तरह तो हैं नहीं कि जब जी किया, बदल दिया। आजकल पीले का जमाना है , तो पीला ही खरीदेंगे। ठीक उसी तरह इन दिनों हवा मेरे पक्ष में नहीं तो चलो थोडा चापलूस बन जाते हैं। " गधे को बाप भी वही बना सकता है जिसे बनाना आता हो।" जिस व्यक्ति में यह कला हो।
व्यवहार, संस्कारों और अनुभवों की नींव पर खड़ा वो मकान है जिसकी बनावट नहीं बदली जा सकती ।
हाँ, उस मकान या ईमारत पर पुताई, रंगाई कर , सजा कर एक नया रूप दिया जा सकता है। उसके रख- रखाव का ध्यान रख उसे सदाबहार बनाया जा सकता है। उस मकान को बनाने में यदि कोई खिड़की या रोशनदान की कमी रह गई हो, तो काफी तोड़- फोड़ करनी होगी, बाहर की रौशनी को भीतर ल्लाने के लिए। उन पत्थरों पर वार कीजिए। अपनी बनाई इमारत को टूटता देख तकलीफ होगी। पर उसे सुंदर, मनमोहक रूप देने के लिए आपको अवश्य ये कदम उठाना चाहिए।
@गुंजन झाझरिया

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