शुक्रवार, 29 जून 2012

मेरी पूजा का कोई फल नहीं मिलता

जब सामने वाले मंदिर में आरती करने पंडित उठते हैं..
मैं उनसे पहले ही उठ खड़ी होती हूँ..
वो पूजा की तैयारी करते हैं,
और मैं इनके दफ्तर जाने की....
जब उनकी आरती की घंटी बजती है..
मैं इन्हें उठा रही होती हूँ..
वो प्रसाद बांटते हैं..
मैं नाश्ता करवा रही होती हूँ...
जब पंडित मंदिर की सफाई में जुटते हैं.
मैं घर आंगन की सफाई में जुटी होती हूँ..
जब वो १२ बजे मंदिर के पट बंद करते हैं..
मैं तब भोजन कर थोडा लेट पाती हूँ..
फिर पंडित जैसे ही ३ बजे की घंटी बजाते हैं,
मेरे बच्चे स्कूल से आ जाते हैं...
जब पंडित कुंडलियाँ देखते हैं...
मैं बालको का सेवा पानी करती हूँ,,
मेरा भविष्य तो वही है न..
फिर शाम की आरती होने लगती है,
और ये दफ्तर से आ जाते हैं..
फिर होड लगती है
मुझमे और मंदिर के पंडित में
किसकी भक्ति में ज्यादा शक्ति .
हर रोज न जाने कौन सी चूक हो जाती है
जो मेरे मंदिर के स्वामी क्रोधित हो जाते हैं..
रात का नजारा थोडा अलग होता है...
मंदिर के पंडित जब चैन से १० बजे सो जाते हैं..
मैं उनके हाथो से मार खा रही होती हूँ..
कितने पढ़े लिखे और ज्ञानी होते हैं ये पंडित..
इनकी पूजा से कभी स्वामी को क्रोध नहीं आता,
बस सुकून की बौछार होती है..
मैं अबोध हूँ..अज्ञानी हूँ..
जो मेरी पूजा का कोई फल ही नहीं मिलता...
Copyright ©गुंज झाझारिया

7 टिप्‍पणियां:

  1. सशक्त रचना...सहजता से कही गयी....
    दिल को छू गयी..


    अनु

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  2. aapki blog link aur aapke copyright name ke sath fb par share kar rahi hu...

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  3. aap ne bahut hi khobsurti ke saat ek aurat ki zindagi ki kahani ko shbdo mei piroya hai...!! ati hi khobsurat..!!

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  4. ramaajay ji...anu ji..kanupriya ji.. Raman ki..
    aap ka tahe dil dil se shukriya..:)))))

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