बुधवार, 2 नवंबर 2011

वैज्ञानिक और सैधांतिक


अजब सी कसमकश होती है 

हर बार जब जिंदगी नया मोड़ लेती है|
अपने ही फैसले पर डर सा लगता है,
किन्तु फिर वही बात जोखिम उठाने के लिए प्रेरित करती है! अगर मैं मान भी लूँ की ये सब वेद- पुराण मनुष्य ने ही अपने सहूलियत के लिए बनाये थे और तब जिदगी जीने का तरीका अलग था, और वो  नियम आज के हिसाब से सही नहीं है!
तो भी ये कैसे भूल जाऊ कि हर एक बार " जो होना होगा, वो होगा." इसी बात ने मुझे नया जोखीम लेने कि हिम्मत दी.या हर बार मेरे अन्दर जागे हुए शैतान को ठंडा किया ये कहकर कि "इस बात का बदला भगवान् स्वयं ले लेगे, वक़्त उसे उसकी सजा देगा,मैं क्यों अपना व्यक्तित्व गिराऊ?"
जबकि मैं जानती हूँ कि ना तो मैंने उस इश्वर को देखा है, ना ही कोई वैज्ञानिक तरीके से ये साबित है! फिर पूरी तरह से पढ़ लिख कर, पूरी तरह से मानवी शक्तियों से वाकीफ हो कर मैं ये कैसे विश्वास कर सकती हूँ, कि इश्वर जरुर उसकी गलतियों कि सजा उसे देगा!

लेकिन बात यहाँ आस्तिक या नास्तिक होने कि नहीं है!ना ही सही और गलत कि!
मुद्दा है कि कभी कभी बिना साबित हुई, और बिना वैज्ञानिक तरीके से सिद्ध हुई बाते भी हम कितने विश्वास के साथ मानते हैं! आखिर ऐसा क्यों?
जहा तक मेरा सोचना है, ये सब इसलिए हम आंख बंद करके मान लेते हैं, क्युकि इस सब संसाधनों और ढेर सारे प्रयोगों के बीच हमारे वैज्ञानिक हमारे निजी जिंदगी में आने वाली भावनात्मक समस्याओ का एवं मन कि शांति के लिए कोई रास्ता नहीं बता पाए..!
वो सब ये भूल ही गए कि उनके बनाये संसाधन आराम तो देंगे लेकिन सुकून होगा तभी उस आराम का आनंद आ पाएगा!
वह बात जो हमारे वैज्ञानिक नहीं खोज पाए, वो हमारे पूर्वजो ने खोजी! और आज तक हम उन बातो का वैसा वैसा रूप आंख मूँद कर मानते आ रहे हैं क्युकि इसके अलावा हमारे पास कोई और रास्ता नहीं है! हाँ ये तो जाहिर है कि उस रूप में बदलाव जरुरी है, इसी वजह से कुछ लोग इसे ढकोसला भी कहते हैं, क्युकि वो रूप अब पुराना है और बदलते समय के साथ ताल -मेल नहीं कर पा रहा|

पहले के लोगो का धन्यवाद जो कम से कम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या देना है, जो वो सुकून से जिए! ऐसा सोचते थे और बहुत सारी सीख देकर जाते थे, जिससे और कुछ नहीं तो संतोष, सद्भाव और भाईचारा तो बढ़ता था!
किन्तु आज-कल हमारी पीढ़ी तो हमारे वैज्ञानिको कि खोजी आरामदायक चीजों में इतनी व्यस्त है कि भूल गई है, उनके बच्चो को पैसे, माकन, गाड़ी के अलावा विरासत में और भी देना है, जिसके बिना वो सब चीज़े बेकार है! वो है---- जिंदगी जीने का तरीका!

हाँ तो मैं कह रही थी कि भगवन है या नहीं ये तो साबित नहीं हो पाया फिर भी आप, मैं और सभी लोग बिना किसी सवाल के उन्हें  पूजते और मानते हैं!क्यों?
तो मेरा जवाब है, अगर मेरी सारी परेशानिया उन्हें बताकर, मुझे शांति मिलती हो! उनके द्वार पर जाकर मुझे एक विशेष सी सकारात्मक उर्जा मिलती हो! और उनसे कुछ मांगते वक़्त एक आशा और उम्मीद जगती हो, जिससे मैं अपना काम और भी विश्वास के साथ कर पाती हूँ....तो क्यों ना मानु?
जब उनके होने मात्र के डर से लोग झूठ बोलने या चोरी करने से डरते हैं, तो क्यों ना मानु? हाँ मैं मानती हू कि डर कि बजे अगर समझ से चोरी ना करने फैसला लिया जाए तो और भी अच्छा है! किन्तु तरीका चाहे जो भी हो, बुराई का अंत तो हो ही रहा है ह ना!
कुछ दोस्त कहते हैं कि जब तुम अंडा-मांस खाते हो तो दिन के हिस्साब से क्यों?
मंगलवार को भगवान् होते है और सोमवार को नहीं ? ये क्या बात हुए ये बकवास है!
हाँ मैं उनकी बात से भी सहमत हूँ, किन्तु कभी दुसरे और नए नजरिये से भी सोचो , कि बात सिर्फ खाने या ना खाने कि नहीं है!
बात है अपने मन को अपने मुठी में लेने कि...अगर किसी एक प्रण से मेरा स्वं पर नियंत्रण बढ़ता है, तो अची बात है ना!
अब आप ये कहोगे कि फिर खाओ ही मत ! और नियंत्रण बढेगा,
किन्तु दोस्तों क्या आपको लगता है कि मैं कोई चीज हमेशा के लिए छोड़ दू, तो मेरा उसे खाने का मन वैसा ही रहेगा हमेशा?
धीरे-२ मुझे अदात हो जाएगी कि मुझे नहीं खाना...और आजकल संभव भी कम है हर एक चीज़ में मिलावट और किसी भी पार्टी में आपको 
पूरी तरीके से शाकाहारी भोजन मिले...तो वक़्त के साथ थोडा बदलना पड़ता है!
जो लोग पूर्णतह शाकाहारी हैं, उनको काफी समस्या का सामना करना पड़ता है, यह मैं शाकाहारी होने के विपक्ष में नहीं हूँ, सिर्फ अपनी राय दे रही हूँ!

इस लेख को लिखने का बस यही मकसद था, कि सारी पुराणी बाते दकियानूसी नहीं होती हैं!
बस उन्हें नए तरीके से सोचने और समझने कि जरुरत हैं!
वक़्त के हिसाब से कम- ज्यादा हो सकता है, लेकिन उन्हें नाकारा नहीं जा सकता!
और मेरा निवेदन है आज कि पीढ़ी से कि अपनी जिंदगी के हर अनुभव को आने वाली पीठी के साथ बाते और साथ में उन्हें हल भी समझाए!
जरुरी नहीं कि उन पर थोपे किन्तु मानव जाती के विकास के लिए हमारी कुछ जिम्मेदारी है, ये ना भूले!सच तो ये है कि आधुनिक मानव नयी और पुरानी, वैज्ञानिक और सैधांतिक बातो में फस कर रह गया है! जिससे निकलना बहुत जरुरी है! 

नोट: यह लेख मुझे आज के हर समय साधनों से घिरे किन्तु चिंतित मानव के वजूद ने लिखने को मजबूर किया!आप-सब से छोटी हूँ, किन्तु मुझे ठीक लगा तो बांटा आप सब के साथ !
धन्यवाद!

गुंजन झाझारिया 

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