बुधवार, 9 नवंबर 2011

जीविका की लड़ाई

करत-करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान,
रस्सी आवत जात है, सिल पर पडत निशान!!!

ये दोहा हमेशा से ही प्रेरनादायी रहा है! जब भी कोई काम मुश्किल लगे, बस इसे दोहरा लो..और बस मनो किसी ने मरते शारीर में जान डाल दी हो!
अभी थोड़े ही दिन पहले हमारे ही देश के एक युवा "सुशिल कुमार" ने "कौन बनेगा करोरपति" का ख़िताब जीता! और ५ करोड़ के अधिकारी बने!
बेहद ख़ुशी हुए, छोटे-छोटे गाँवो में भी इतनी प्रतिभा भरी है!यहाँ बात सिर्फ जानकारी होने की नहीं है! उस जगह पर बैठकर, हर एक फैसले की है!
उस हर एक निर्णय चाहे वो, जवाब देने का हो, या फिर किसी तरह की कोई सहायता लेनेका..सहायता लूँ की नहीं? कौनसी लू? कब लू?
ये सब एक-एक बात को गिना जाता है! इतनी समझदारी से आपको अपने  बुद्धिमान होने का प्रमाण देना होता है!
बधाई हो सभी भारतीयों को इस विजय की! अब इस गर्व से कह सकते हैं की भारत के गाँव भी समझदार है!
जरुरत है तो सिर्फ साधनों की!

नए आंकड़ो के हिसाब से हमारी साक्षरता दर है: पुरुषो के लिए---82.14%,महिलाओं के लिए---- 65.46%
लेकिन अगर बात रोजगार की करे, तो हमारे मंत्रालय के आंकड़ो के हिसाब से---
Sixty per cent of India's workforce is self-employed, many of whom remain very poor. Nearly 30 per cent are casual workers (i.e. they work only when they are able to get jobs and remain unpaid for the rest of the days). Only about 10 per cent are regular employees, of which two-fifths are employed by the public sector.
http://www.indiaonestop.com/unemployment.htm

मतलब २.५ की दर से निचले दर्जे पर काम करने वाले लोगो की संख्या बढ़ रही है! अब सरकार का दावा है की साल में १०० दिन रोजगार की गारंटी ..यानि नरेगा!
तो बाकी के २६५ दिन घर पे बैठो!
बात भी सही है, इतने सारे रोजगार सरकार लाये कहा से? लेकिन समस्या को जड़ से जानने की जरुरत है!
मैंने देखा है की गावो में जो साधन है, उतने तो युवा काम में लेते हैं! जैसे एक ग्रेजुएट की डिग्री, ये बी.एड. की डिग्री!
फिर भी रोजगार नहीं? विदेशो में तो बचे १६-१७ साल की उम्र में कमाने लगते हैं!
कारण है की ---हमारे गाँवो में सिर्फ किताबी पढाई है, उनके पास "कौशल" की कमी है!
आज के दिन सरकारी हो या गैर-सरकारी अगर नौकरी चाहिए तो आपमें कौशल होना जरुरी है! चाहे वो बात करने का, या फिर समस्या को सुलझाने का, या कपडे पहनने का! हर एक चीज़ का ढंग और तरीका जरुरी है! और तभी वो किताबी पढाई काम आती है!
लेकिन सीखने और समझने के लिए देखने की जरुरत है!हमारे गाँवो में हमारे युवा किसको देखकर ढंग और तरीका सीखे? कौशल सीखे?
घर से ----? मगर परिवार में तो सभी बड़े अनपद है या सिर्फ अखबार पढना जानते हैं! और ऐसे कोई साधन नहीं है!

तो आई जड़ पकड़ में? जड़ है उनके असली विकास की! तो मेर मानना है की अगर हमारी सरकार १०० दिन के रोजगार की गारंटी के साथ अगर हमारे गाँवो के युवाओ को विभिन्न तरह के कौशल यानि skills की कक्षाए और प्रशिक्षण उपलब्द करवाए तो ज्यादा अच्छा है!

क्यों ना रोजगार दर को बढ़ने के लिए...सरकारी नौकरी की इच्छा रखने वाले शहरी और कौशल सम्पूर्ण युवाओ की ५-१० की मंडली बनायीं जाए..और उन्हें कुछ गाँवो का जिम्मा सौपा जाये..की वो गाँव के युवाओ को हर तरह के कौशल से अवगत करवाए और उन्हें सोचने-समझने, रहने-खाने, पहनने और जीने का ढंग सिखाये! फिर शहर और गाँव में फर्क नहीं रह जाएगा! ना ही किसी गाँव वाले को रोजगार देने के लिए सरकार को बार-बार सड़के तोड़ कर नयी बनवानी पड़ेगी!और ना हमारे गाँवो में बसे असली हुनर को "गंवार" का नाम दिया जाएगा!

मुझे तो ताज्जुब नहीं है की सरकार ऐसी कोई योजना क्यों नहीं लाती? फिर वो वोतेस के लिए लोगो को बहला-फुसला नहीं पायेगे!
किन्तु हमारे NGO's कहा है? समझ सेवा की बड़ी-बड़ी बाते करते हैं! कौनसी नयी क्रांति लाये है? ज्यादातर NGO's के ऑफिस आप सब को बड़े शहरो में ही मिलंगे! क्यों नहीं गाँवो में जाकर ऑफिस खोलते...और दिन-रात उनके साथ रहकर उनका जीवन स्तर सुधारते ?

सिर्फ योजना बनाना काफी नहीं है, असली चाह जरुरी है!

मेरा आग्रह है, सुशिल कुमार से की अगर वो MNREGA का जिम्मा लेते है और प्रचार करते हैं, तो उन्हें कम से कम इस "कौशल प्रबंधन" यानि skill management की बात जरुर रखनी चाहिए मंत्रालय के सामने....

----गुंजन झाझारिया 


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