रविवार, 29 जुलाई 2012

पड़ोसी हमारे..या हमारे पड़ोसी..

पिछले ७-८ साल से अलग अलग शहर भी देखें..कई घर बदले, कई दोस्तों के घर देखे,,और फिर यह बात मेरे ज़हन में उठी ...आप अगर हिंदुस्तान में रहते हैं. और एक आम आदमी हैं..तो इस बात से आप भली बह्न्ति परिचित भी होंगे और मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि १०० में से ९५ लोग इस समस्या से हर रोज झुझते होंगे..वो समस्याये पैदा करने वाली जगह है,  घर के सामने का चबूतरा या घर की गली..नहीं नहीं समस्या जगह नहीं है, किन्तु यहाँ समस्याएं पैदा जरुर होती हैं...
किसी ने कहीं पत्थर लगा दिया,,,किसी ने कही नाली बनवा दी...किसी ने अतिक्रमण कर बड़ा सा चबूतरा बना दिया और किसी ने जबरन सड़क पर ब्रेकर बनवा दिया...वगैरह -२!
पडोसी अक्सर बहस करते पाए जाते हैं हमारे हिन्दुस्तान की गलियों में..
किसी को गली से, सबके भले से कोई वास्ता नहीं..पढ़े-लिखे, अच्छे भले समझदार पड़ोसियों को मिट्टी पत्थर के लिए लड़ते देखा है..और तो एक ही सोसाइटी के लोगो को किसी के घर के पास कचरा फेकने में भी बड़ा मजा आता है..और यह भी अक्सर बहस का मुद्दा रहता है..
एक किस्सा है...
मैं अपने पैत्रक स्थान पर आई कुछ दिन पहले, यहाँ रोड के दोनों तरफ नाली का प्रबंध है..किन्तु रोड के जिस तरफ हमारा घर है, उस तरफ आधी गली में नाली नहीं बनी, उसका कारण है कि हमारे तरफ के घरों के पीछे एक पहाड है,और पहाड के नीचे एक सुन्दर तालाब..(खूबसूरत नज़ारा है..:) ..)....  बरसात के समय में उस तालाब में जायदा पानी भरे तो घरों के लिए नुकसान है अतः सरकार ने वहाँ नाली न बना कर बड़ा नाला बनाने की सोची..अतः नाली नहीं बनाई गई..अब नाली नहीं बनी तो पानी कहाँ जायेगा? इसका हल मेरे पापा ने यह निकला कि जहाँ नाली बंद होती है वहाँ उसे सामने वाली यानी रोड के दूसरी तरफ वाली नाली में मिला दिया जाए जो पूरी ओर अच्छी तरह सिविर लाइन से जुडी है..इससे पानी सड़क पर नहीं फैलेगा..
किया तो भलाई का काम..सभी लोग जिनके घर के आगे नाली नहीं बनी, इस बात से खुश भी हुए..
भई ..सामने वाले लोग लड़ने आ गए..कि हमारी नाली में हम नहीं मिलाने देंगे..:)..बेशक पानी सड़क पर जाए..
उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि उन्ही की गली गन्दी हो रही है..गली की सड़क तो उनकी भी है, चाहे रोड के इस तरफ हो या उस तरफ..

इसी तरह एक दोस्त के यहाँ गयी थी ..सोसाइटी है..ओर पार्किंग में हर एक को जगह बांटी गई है, उनके फ्लैट नंबर के आधार  पर...लेकिन फिर भी जान-बूझकर लोग दूसरों की पार्किंग में खड़ी करते हैं गाडी..ओर फिर शुरू होती है बहस..

एक और किस्सा...ऊपर नीचे २ मंजिला फ्लैट हैं..अगर नीचे, ऊपर दोनों  के यहाँ गाड़ी हो तो जरुर चिंता का विषय है...ओर ऊपर वालो को अपनी गाडी पार्क करने को कोई ओर जगह ढूँढना बनता है..लेकिन जब नीचे वालो के यहाँ गाडी ही नहीं है, तो भी अगर वो ऊपर के फ्लैट वालो को गाडी पार्क न करने दें घर के आगे, तो कैसे पड़ोसी हैं.?

पड़ोसी तो वो होता है, जो मिल-जुलकर रहे, दूसरे की तरक्की में चाहे शामिल न हो, लकिन खुश जरुर हो..
पर भाईसाहब यहाँ मतलब हमारे देश में, कहते भी शर्म आती है, मेरे भारत देश में, लोग नियमों को ताक पर रखकर, पड़ोसी हैं ये भूलकर, और तो और सही ओर गलत भूलकर लडते हैं...
जब पड़ोसी के यहाँ कोई खुशी आये तो जल-भून कर राख हो जाते हैं..इर्ष्य, द्वेष तो कूट कूट कर भरा है..
ओर यही दे रहे हैं विरासत में बच्चो को..
अगर मोहल्ले में किसी दूसरे बच्चे के आपके बच्चे से ज्यादा नंबर आये, तो आप यह नहीं देखेंगे कि हमारा बच्चा कितना लायक था, अपने बूते से ज्यादा ही लाया है..आप खुश नहीं होंगे..आप दुखी होंगे...और दुखी भी इसलिए नहीं कि वो आपके बच्चे से ज्यादा लाया है..बल्कि इसलिए कि वो बच्चा यानी उनका बच्चा,यानी आपके पड़ोसी का बच्चा इतने नंबर क्यों लाया है? बस....

और यही बच्चे सीखते हैं...कि वो मुझसे आगे क्यों गया..ये नहीं देखते कि वो कितना काबिल है, उसने कितनी मेहनत करी है... नहीं..
यह इर्श्या भाव हमारी रग्-रग में बस चूका है..इसी कि वजह से तो भाई भाई को मार देता है और पड़ोसी -पड़ोसी को...
यह समस्या जितनी सरल दिखती है, उतनी है नहीं..
पड़ोसियों से झगड़ा मेरे भारत के हर आम नागरिक की दिनचर्या और टेंशन का हिस्सा है..
शायद ये लेख पढकर ही हम सोच सकें, कि ज़रा से फायदे के लिए हम इंसानियत क्यों ताक पर रख देते हैं..?
अगली बार किसी भी बहस से पहले यह जरुर सोचे कि क्या इसका कोई और हल है जिससे दोनों को संतुलित फायदा हो..और बात बन जाए..और अगर लड़ने में आपको मज़ा आने लगा है ..तो इस आदत को सुधारिये..आपकी वजह से कितने लोग मानसिक तनाव में रहते हैं, इसका अनदाज़ा नहीं है शायद आपको..
सद्भावना ओर सौहार्द से जीने में किसी का नुकसान नहीं है...यकिन मानिये आपका भी नहीं है...

copyright गुंजन झाझरिया "गुंज"




2 टिप्‍पणियां: